समुद्र तट पर बैठ ऐसा लगा ,
मानो वक्त ज़रा थम सा गया हो
शायद मेरी तरह वह भी थक गया था
किनारे आती हर लहर,
एक बीते लम्हे का एहसास करा रही थी
मन में कई विचार दौड़ लगाने लगे,
और अंत में एक एक कर
इन लहरों की तरह,
किनारे आकर शांत हुए
आख़िर इंसान भी तो लहरों सा चलता है,
कभी तेज कभी धीमे
हाँ , किनारा शायद हर किसी को नसीब नहीं होता ।
- अरमान